कविता : नशे का कहर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शनिवार, 26 अप्रैल 2025

कविता : नशे का कहर

मैंने सोचा कब छूटेगी इनकी ये लत,

फिर भी सेवन किया उसने हर वक़्त,

नशा जो करता रहा कोई इंसान,

फिर कभी न होगा उसका कल्याण,

नशे को छोड़ कर तो देखो एक बार,

वरना छूट जाएगी ये ज़िन्दगी ये संसार,

कब होगा नशे का सिलसिला बंद?

नहीं तो ये कर देगा सभी का अंत,

मत पियो ये जहर है एक ऐसा,

जिसकी चपेट में आ रहा हर शहर है,

कहीं न खुले नशे की ये दुकान‌,

अगर अभी न रोका इसको,

बना देगा ये हर घर को शमशान।।




Jyoti-charkha-feature

ज्योति

कक्षा - 9, उम्र-15

बैसानी, कपकोट

बागेश्वर, उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं: